Sangeet Mein Bandish Kala Evam Natak Ka Mahatva

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संगीत में बंदिश कला एवं नाटक का महत्व

Author-Editor/लेखक-संपादक Prof. Swatantra Sharma
Language/भाषा Hindi
Edition/संस्करण 2014
Publisher/प्रकाशक Pratibha Prakashan
Pages/पृष्ठ 384
Binding Style/बंधन शैली Hard Cover
ISBN 9788177023336
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आज से दो-ढाई हजार वर्ष पहले भारत ने रंगमंच और दूसरी प्रदर्शन कलाओं के आपसी सम्बन्ध पर अपने नाट्यशास्त्र में बार-बार चर्चा की है, जहाँ एक और उन्होंने गायन-वादन, संगीत, नृत्य को रंगमंच पर प्रमुखता प्रदान की, वहीं ललित कलाओं जैसे चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य को भी बराबर का दर्जा दिया है। रंगमंच के साथ चित्रकला के अन्तर्सम्बन्धों का एक महत्त्वपूर्ण दौर मध्यकाल में इसी को पश्चिम में रिनेसां कहा जाता है, जिनमें शुरू होता लियोनार्डो द विंची और माइकल एंजेलो का नाम प्रमुख है। 20वीं सदी में पब्लो पिकोसो ने न केवल नाटकों के लिये दृश्यांकन किया, बल्कि स्वयं भी नाट्य रचना की ओर आकर्षित हुए। रवीन्द्रनाथ टैगोर के रंगमंच से सम्बन्धों की बात जगजाहिर है। सन् 1942का ‘इप्टा’ आन्दोलन, जिसमें संगीतकारों, नृत्यकारों, चित्रकारों, रंगकर्मियों ने एक साथ मिलकर अनेक नृत्य प्रस्तुतियाँ दीं।

राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय, ग्वालियर में संगीत संकाय, नृत्य संकाय, चित्रकला संकाय, नाट्य एवं रंगमंच संकाय हैं, जहाँ अनेकों छात्र-छात्राएँ स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इन सभी ललित कलाओं की समय-समय पर विद्वत संगोष्ठियों के आयोजन की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए तथा संगीतकारों एवं कलाकारों को एक मंच से अपने विचार प्रस्तुत करने हेतु विश्वविद्यालय ने एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। जिसमें उत्कृष्ट कलाकार प्रो० श्रुति शाडोलीकर काटकर प्रो० उमा गर्ग, डॉ० रागिनी त्रिवेदी, प्रो० पी० एल० गोहदकर, डॉ० देवेन्द्रराज अंकुर, प्रो० अजय जेटली, अल्पना बाजपेयी इत्यादि संगीत, कला, नृत्य व नाटक के अनेक विद्वानों के अतिरिक्त विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों तथा ग्वालियर के अनेक कलाकारों ने अपने विचार प्रस्तुत किये व प्रस्तुतियाँ दीं।

प्रस्तुत ग्रन्थ उक्त संगोष्ठी में विद्वानों, कलाकारों द्वारा प्रस्तुत शोध पत्रों का संग्रह है जो निश्चित रूप से संगीत, कला तथा नाट्य के अध्येताओं, शोधकर्ताओं तथा कलाकारों के लिये नितान्त उपादेय है।

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