वैदिक वाङ्मय विश्व की अमूल्य धरोहर हैं। इसकी ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद नाम की चार वेद संहितायें है। सहसवा सामवेदः कहकर महर्षि पतञ्जलि ने सामवेद की एक सहस्र शाखाओं का उल्लेख किया है। सामवेद के कौथम, राणायणीय तथा जैमिनी ये तीन प्रकार हैं। सामवेद संहिता के गान और आर्चिक नाम से दो भेद हैं। गान के ग्रामेगेयगान या वेयगान तथा अरण्ये गेयगान और ऊह्यगान तथा आर्चिक के पूर्वार्चिक एवं उत्तरार्चिक भेद हैं।
भारतीय संगीत शास्त्र की उत्पत्ति सामवेद संहिता से ही हुई है। भारतीय संगीत में प्रयुक्त होने वाले स्वर-ऋषभ, गांधार, धैवत, निषाद, पञ्चम, मध्यम तथा षडज आदि सर्वप्रथम सामवेद से ही निःसृत हुये हैं।
सामवेद संहिता के अनेको संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। किन्तु उनमें से कुछ में मुद्रणगत दोष हैं, कुछ अति प्राचीन संस्करण होने के कारण जीर्ण शीर्ण हो चुके हैं तो कुछ वर्तमान में उपलब्ध ही नहीं हैं। . प्रस्तुत संस्करण में त्रुटियों का निवारण करके शुद्ध मूल पाठ को उत्तम कागज और आकर्षक साजसज्जा के साथ प्रकाशित करके विद्वानों तथा वेदानुरागियों के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है।
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