सम्पूर्ण विश्व में रामचरित मानस के कथानक पर प्रचुर कार्य हुआ है और लगातार हो रहा है। अनेक प्रचारक, कथावाचक, महात्मा, विद्वान्, मानस मर्मज्ञ, विचारक, सन्त, धर्मगुरु, महन्त, पीठाधीश, कवि, लेखक, शोधार्थियों ने मानस के कथानक, कथावस्तु पर अगणित कार्य किए हैं पर मानस की रचना शैली पर उस अनुपात में कार्य नहीं हुआ है। मानस के कला-पक्ष, रचना-प्रक्रिया, विधान और शैली पर अपेक्षाकृत शोध कार्य के प्रति उदासीनता विस्मय की बात है।
‘मानस संख्यावाचकअन्त्याक्षरी कोश’ के संकलन एवं सम्पादन का मूल उद्देश्य इसी कमी को पूरा करना है।
तुलसीदास ने मानस के प्रत्येक काण्ड में श्लोक, दोहा, चौपाई, छन्द और सोरठा आदि काव्य शैलियों का प्रयोग किया है। किन्तु इन काव्य शैलियों का सभी काण्डों में समान रूप से प्रयोग नहीं हुआ है। जैसे कितनी चौपाईयों के बाद दोहा हो, सोरठा हो, छन्द हो, इसका निश्चित मानक नहीं है। सर्वत्र • विविधता एवं स्वच्छन्दता है जैसे- बालकाण्ड में आठ चौपाइयों के बाद दोहा, फिर 12 एवं 13 चौपाई के बाद दोहा है जबकि अरण्य काण्ड में मात्र दो चौपाई के बाद ही छन्द आ जाता है और उत्तर काण्ड में अधिकतम 37 चौपाई के बाद भी दोहा आता है। ऐसे ही काण्ड के आकार में भी विविधता है किष्किन्धा काण्ड सबसे छोटा है इसमें कुल 301 चौपाइयाँ हैं तो सर्वाधिक बाल काण्ड में कुल 2968 चौपाई है। प्रत्येक काण्ड श्लोक से प्रारम्भ होता है पर इसमें भी विविधता है, जैसे बालकाण्ड के प्रारम्भ में सात श्लोक हैं तो अयोध्या काण्ड में तीन श्लोक ही हैं और अरण्य काण्ड में मात्र दो श्लोक हैं। इसके अलावा कोई भी काण्ड श्लोक से समाप्त नहीं होता पर उत्तर काण्ड श्लोक से शुरू होता है और श्लोक से ही समाप्त होता है।
प्रस्तुत कोश में समस्त चौपाई, दोहा, सोरठा, छन्द तथा श्लोक की गणना करके उन्हें अकारादि । क्रम से रखा गया है। यह अपने प्रकार का विश्व का प्रथम संख्यावाची कोश है। जो रामचरित मानस के प्रचारकों कथावाचकों, मानस मर्मज्ञों, सन्तों, विद्वानों एवं शोधार्थियों के लिये अत्यन्त उपादेय है।
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