शिक्षा के अध्ययन अध्यापन की प्रक्रिया अतीत काल से ही चली आ रही है। शिक्षा द्वारा ही मानव की अज्ञानता का शोधन, परिमार्जन, तथा मार्गान्तरीकरण किया जाता है, तभी वह पूर्ण शिक्षित व्यक्ति बन पाता है। शिक्षा मानव के विकास के लिए आवश्यक है। महाभारत के अध्ययन से तत्कालीन समाज में प्रचलित शिक्षा प्रणाली के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित विस्तृत साक्ष्य प्राप्त होते हैं। महाभारतकालीन शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को न केवल साक्षर बनाना था, अपितु उसे सुसंस्कृत एवं सभ्य नागरिक बनाना भी था। महाभारत कालीन शिक्षा प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था की आधारशिला रही है तथा शिक्षा का व्यक्ति तथा तत्कालीन समाज के विकास में विशिष्ट स्थान रहा है। इसलिए महाभारत कालीन शिक्षा के विभिन्न पक्षों को मूर्त रूप देकर स्थान-स्थान पर आधुनिक शिक्षा के साथ सम्बन्ध स्थापित करना प्रस्तुत ग्रन्थ की उपलब्धि है।
प्रस्तुत कृति के द्वारा यह सुस्थापित करने का प्रयत्न किया गया है कि विद्यालयों एवं महाविद्यालयों का कार्य केवल छात्रों को उत्तीर्ण कराकर उपाधि देने तक सीमित नहीं है, पुस्तकीय ज्ञान देना ही उनका कर्तव्य नहीं है अपितु छात्रों का सर्वांगीण विकास करना भी उनका कर्त्तव्य है।
महाभारत कालीन शिक्षा प्रणाली के विशद् विश्लेषण, व्यापक अध्ययन एवं सम्यक् प्रतिपादन के कारण प्रस्तुत ग्रन्थ पाठकों, छात्रों, जिज्ञासुओं एवं जनसाधारण के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा।
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डॉ० बाबूलाल मिश्र का जन्म मध्य प्रदेश के विन्ध्य क्षेत्रान्तर्गत “रूपौली” नामक ग्राम में माघ शुक्ल पक्ष, तिथि प्रतिप्रदा, संवत् 2018 को हुआ। डॉ० मिश्र ने प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा वहीं से प्राप्त करके स्नातक उपाधि पन्ना से प्राप्त किया।
उच्च शिक्षा अर्जित करते हुए डॉ. मिश्र ने आचार्य (ज्योतिष) में स्वर्णपदक (गोल्ड मेडल) प्राप्त किया है। आपने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर से एम० ए० (संस्कृत) प्रथम श्रेणी, एम० ए० (हिन्दी) प्रथम श्रेणी, एम. एड. प्रथम श्रेणी, एम. फिल्० (संस्कृत) प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करते हुए वर्ष 1993 में पी० एच० डी० (संस्कृत) की उपाधि अर्जित की। वर्तमान में डी० लिट्. (ज्योतिष) के अन्तर्गत “वैदिक साहित्य में ज्योतिष” विषय पर गहन शोध कार्य कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि डॉ० मिश्र सत्र 2001-2002 में सहायक प्राध्यापक (ज्योतिष) के पद पर “शासकीय रामानन्द संस्कृत महाविद्यालय, लालघाटी, भोपाल में अध्यापन कर चुके हैं।
सम्प्रति आप रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग में “अतिथि प्राध्यापक” के रूप में अध्यापन कार्य में सन्नद्ध हैं।
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