प्रस्तुत पुस्तक ‘भुजबलनिबन्ध:’ में राजा भोज के ज्योतिष शास्त्र से सम्बद्ध विभिन्न अभिमतों के साथ प्रस्तुत किया गया है। इसकी मूल पाण्डुलिपि गवर्नमेंट ओरियंटल मेन्युस्क्रिप्ट लायब्रेरी मद्रास में क्रमांक 3078 पर हस्तलिखित पाण्डुलिपि के रूप में है। प्रति में जहाँ-तहाँ श्लोक या श्लोकांश के रिक्त स्थान हैं तथा पाठ की अशुद्धियाँ भी हैं। इसमें अठारह अध्यायों में प्रायः 1846 श्लोकों में भोज ने रत्नमाला, नारदीय भीमपराक्रम, वामनपुराण, ब्रह्मपुराण का नामतः उल्लेख करते हुए विभिन्न सन्दर्भों में उनके उद्धरण दिये हैं। यही नहीं बिना नाम दिये भी भोज ने अनेक श्लोक उद्धृत किया है जिनका संकेत पुस्तक में (सं०) यथास्थान किया गया है। पुस्तक में जहाँ-तहाँ श्लोक अपूर्ण या खंडित अंश में भी हैं।
इस पुस्तक के अन्तिम 18वें अध्याय के मुख्य विवेच्य विषयों में से राजस्वला, नदी (रजस्वला). श्रावणमास कृत्य, इन्द्रध्वजोत्थापन, भाद्रमासकृत्य, अगस्त्यार्घ्य, काम्यपितृकर्मनिषेध अपरपक्षविधि, पत्रिकापूजा, अश्वपूजा, अश्वशान्तिपूजा, रेवतपूजा, दुर्गाष्टमी नवमी, अपराजिता पूजा (दीपदान). यमतर्पण, गोष्ठाष्टमी, पौषमासकृत्य, (माख) स्नानफल, श्रीपंचमी, स्नान- अर्घ्य – नमस्कारमंत्र, भीष्माष्टमी, (ब्रह्मपुराण- उद्धरण) स्नानमंत्र अर्धोदयमंत्र, माघमासकृत्य, गोविन्द द्वादशी, फाल्गुनमास कृत्य, महामहतीयोग, अशोकाष्टमी, मण्डपादिप्रतिष्ठा इत्यादि के साथ पुस्तक पूर्ण होती है। इस भुजबलनिबन्ध पुस्तक के अंत में विभिन्न अध्यायों में सम्मिलित विभिन्न प्रसंगों की विस्तृत सूची दी गयी है।
प्रस्तुत पुस्तक में ज्योतिष के विभिन्न विषयों में यथावश्यक विवरण तथा यथावसर विभिन्न अभिमत प्रस्तुत किये गये हैं। कहीं-कहीं गद्य में टिप्पणियाँ भी हैं। इसे प्रथम बार मूल रूप में प्रकाशित कर जिज्ञासुओं के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।
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