भारतीय संस्कृति के परम्परागत प्रामाणिक ग्रन्थों एवं आदर्श पुरुषों के वचनों का आश्रय लेकर प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की गयी है। इन ग्रन्थों का दृष्टिकोण अत्यंत विशाल है, इसके विवेचन प्रमाणों सहित प्रस्तुत किये गये हैं, निश्चयात्मक बुद्धि वाले हैं तथा संशयात्मक बुद्धि का वहाँ प्रवेश नहीं है। इसी कारण भारतीय संस्कृति (वैदिक संस्कृति) सनातन हुई, महान् व विलक्षण बनी जिसका दिग्दर्शन प्रस्तुत ग्रन्थ के सभी अध्यायों में हुआ है। ग्रन्थ में आधुनिकता से परिपूर्ण भौतिकवादी समाज के दृष्टिकोणों को भी परखा गया है तथा उनके विचारों की संकीर्णता तथा भोगवादी मनोवृत्तियों से उपजी व्यक्तिगत एवं सामाजिक समस्याओं को दर्शाया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ इन समस्याओं के मौलिक कारणों का अनुसंधान करता है तथा उनके निराकरण के स्थायी उपायों को प्रमाणों सहित बताता है।
प्रस्तुत पुस्तक में सृष्टि के तीन प्रमुख एवं शाश्वत तत्त्वों-प्रकृति, जीव और ब्रह्म – के विस्तृत एवं सूक्ष्म स्वरूपों को समझाया गया है। सम्पूर्ण सृष्टि को तीन भागों (आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक) में विभाजित कर उनके स्थूल व सूक्ष्म पदार्थों का विश्लेषण हुआ है। इतना विशाल दृष्टिकोण अपनाकर तथा सूक्ष्म तत्त्वों की मीमांसा करने के पश्चात ही मानव जीवन के चार ध्येयों (पुरुषार्थ चतुष्टय) का निर्देशन हुआ है तथा प्रकृति के साथ बन्धुत्व रखकर उन ध्येय पदार्थों की प्राप्ति के लिये विविध व्यावहारिक उपायों का निर्धारण हुआ है। प्रस्तुत पुस्तक में सृष्टि के तीनों भागों द्वारा उत्पन्न सुखदुःख का विवेचन है तथा बारम्बार आने-जाने वाले सुखदुःख के कारणों का अनुसंधान कर दुःखों की आत्यन्तिक निवृत्ति तथा अखण्ड आनन्द की सिद्धि के विविध मार्ग प्रशस्त किये गये हैं। पुरुषार्थ चतुष्टय की उपलब्धि हेतु ही भारतीय संस्कृति में वर्णाश्रम व्यवस्था, कर्तव्य-कर्मों का विधान, यम-नियम, पंच दैनिक यज्ञ (ऋणों से उऋण होना), आहार, योगासन, प्राणायाम, संस्कार, सत्संग, निष्काम कर्म उपासना, ध्यान, कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग इत्यादि अनुपम व्यवस्थाएँ प्रसिद्ध है जिनका निरूपण प्रस्तुत कृति का महत्त्वपूर्ण अंश है।
पुस्तक की लेखन शैली इस प्रकार है कि यह प्रौढ़ एवं कुशल विद्यार्थियों को पढ़ाई जा सके। लेखक को स्वयं इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों को आई0 आई0 टी0 बम्बई के प्रौढ़विद्यार्थियों को पढ़ाने का सुअवसर प्राप्त हुआ है।
प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न स्थलों पर भारतीय संस्कृति के सूक्ष्म तत्त्वों का विशद विवेचन किया गया है, जिससे आधुनिक (भौतिक) संस्कृति में व्याप्त असारता तथा भारतीय संस्कृति की शाश्वत महत्ता का दिग्दर्शन होता है।
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