प्रस्तुत प्रबन्ध में प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था के अध्ययन एवं विवेचन का प्रयास एक नई दृष्टि से किया गया है। इसमें ब्राह्मणीय एवं बौद्ध शिक्षा पद्धतियों में निहित सैद्धान्तिक एवं संगठनात्मक भिन्नताओं का विवेचन करते हुए उनके पीछे निहित धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक कारकों के उद्घाटन का प्रयत्न किया गया है।
दोनों शिक्षा पद्धतियों में अनेक समानताओं के होते हुए भी कतिपय भेदकारी विशिष्टताएँ हमारे दृष्टि-पथ में आती हैं। ये विशिष्टताएँ ही इनके पथक अस्तित्व को भी प्रकट करती हैं। उल्लेख्य है कि ब्राह्मण एवं बौद्ध जीवन दर्शन में ही अन्तर था। जहाँ ब्रह्मणीय जीवन दर्शन के अन्तर्गत प्रवृत्ति एवं निवृत्ति के समन्वित विकास को अभीष्ट माना गया वहीं बौद्ध दृष्टि निवृत्तिपरक थी, जिसमें जगत और उसके सुखों को क्लेशात्मक अतएव त्याज्य समझा गया। इस जीवन-दृष्टि सम्बन्धी अन्तर ने दोनों ही शिक्षा-पद्धतियों को समग्रतः प्रभावित किया।
प्रस्तुत ग्रन्थ में उपरिलिखित भिन्नताओं के साथ साथ कतिपय अन्य भेदात्मक प्रवृत्तियों को विस्तारपूर्वक रेखांकित करते हुये ब्राह्मणीय एवं बौद्ध शिक्षा पद्धतियों के विकास को प्रभावित करने वाले सांस्कृतिक कारकों तथा दोनों में परिव्याप्त गुण दोषों का भी यथासम्भव विवेचन प्रस्तुत किया गया है।
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