ग्रन्थ-परिचय
वेद सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय का अक्षय स्रोत हैं। शोधकर्ता मनीषीजन अपने द्वारा उद्घाटित तथ्यों का सम्बन्ध वेद, विशेषतः ऋग्वेद से जोड़कर कृतकृत्य हो जाते हैं। ऋग्वेद भारतीय साहित्य का प्राचीनतम उपजीव्य एवं __ अपौरुषेय ग्रन्थ है, इसलिए पाश्चात्य और पौरस्त्य सभी सुधी अन्वेषकों के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु ऋग्वेद ही रहा है।
ऋग्वेद मुख्यतः देवस्तुतियों का संकलन है, जिसके अनेकविध अनुवाद, व्याख्यायें, टिप्पणियाँ तथा स्वतन्त्र विवेचनायें अनेक भाषाओं में मान्य विद्वज्जनों द्वारा प्रस्तुत की गयी हैं। तथापि यह कार्य अब भी पूर्ण नहीं कहा. जा सकता। इसलिए प्रस्तुत ग्रन्थ में पृथक्-पृथक् देवता के सूक्तों का स्वतन्त्र रूप से अध्ययन हो सके, इस दृष्टि से यहाँ केवल बृहस्पति सूक्तों का समीक्षात्मक, व्याख्यात्मक, भाषा वैज्ञानिक तथा अर्थ- निर्धारण की दृष्टि से निरुक्तपरक अध्ययन किया गया है।
प्रस्तुत कृति तीन भागों में विभक्त है। प्रथम भाग में बृहस्पति देवता का देव शास्त्रीय अध्ययन है। द्वितीय भाग में बृहस्पति सूक्तों तथा बृहस्पति-इन्द्र के युगल सूक्तों का आलोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। ऋग्वेद में इस तरह १३ सूक्त मिलते हैं। जिसमें बृहस्पति (ब्रह्मणस्पति) एकल और युगल रूप में वर्णित हैं। इन मन्त्रों की संख्या १४२ है। प्रत्येक मन्त्र से कम से कम दो पद अवश्य लिये गये हैं। इस प्रकार ४८८ पदों पर विशेष रूप से विचार किया गया है। शब्दों के अर्थनिर्धारण में उस शब्द के ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद में प्रयुक्त-स्थलों तथा उन शब्दों के सायण, वेंकट, मुद्गल आदि भारतीय भाष्यकारों और ग्रिफिथ, विल्सन, ह्विटने आदि पाश्चात्य अनुवादकों द्वारा निर्धारित अर्थों को प्रस्तुत करते हुये निरुक्तकार तथा विभिन्न शब्दकोशों के आधार पर अर्थ निर्धारित किया गया है। तृतीय भाग परिशिष्ट का है जिसमें मन्त्रानुक्रमणी तथा ४८८ पदों की अनुक्रमणी है।
संक्षेपतः लेखिका का यह अभिनव प्रयास वैदिक विद्वानों, अनुसन्धित्सुओं, जिज्ञासुओं, पाठकों, एवं छात्रों के लिए नवीन सामग्री उपलब्ध कराने में सहायक सिद्ध होगा।
लेखिका-परिचय
डॉ. (कु०) शारदा पाण्डेय का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद में हुआ। डॉ. पाण्डेय की प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा प्रतापगढ़ में ही हुई। तदुपरान्त इलाहाबाद विश्वविद्यालय से १९७५ में बी० ए० तथा १९७७ में एम० ए० की उपाधि ग्रहण की। १९८४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही बृहस्पति सूक्तों का आलोचनात्मक अध्ययन विषय पर डी० फिल० उपाधि प्राप्त की। आपने सन् १९८९ में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की शोध सहायक-वृत्ति भी प्राप्त की। सम्प्रति आप विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रदत्त शोध-वैज्ञानिक के पद पर संस्कृत-विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली में कार्यरत हैं। डॉ. पाण्डेय के वेद-विषयक अनेक शोध-पत्र देश एवं विदेश की ख्याति प्राप्त शोध-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं.
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