प्राचीन भारतीय समाज में समुन्नत शिक्षा व्यवस्था थी। वह जीवन से जुड़ी हुई थी। शिक्षा में जीवन के लौकिक. पारलौकिक पक्षों में पर्याप्त समन्वय था इस काल में सभ्यता और संस्कृति को बनाने तथा इसमें परिवर्तन लाने में राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक कारकों की अपेक्षा धर्म अधिक प्रभावशाली था। उस समय धर्म ने मानव के सम्पूर्ण जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित किया धर्म ने मानव जाति के सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक जीवन को आचार संहिता प्रदान की तथा उसकी आर्थिक क्रियाओं का संचालन किया। इस प्रकार धर्म ने ही प्राचीन भारतीय समाज में शिक्षा के स्वरूप का निर्धारण भी किया था।
प्रस्तुत पुस्तक तीन खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड- वैदिक कालीन शिक्षा है जिसके अन्तर्गत शिक्षा पद्धति, वैदिक साहित्य, संस्कृत, आचार्य का स्थान, विषय पाठ्यक्रम, परीक्षा-उपाधियाँ, शिक्षण पद्धतियों की उपयोगिता को सम्मिलित किया गया है। द्वितीय खण्ड प्राचीन भारत में नारी शिक्षा की स्थिति से है जिसके अन्तर्गत वैदिक कालीन शिक्षा, बौद्ध धर्म में नारी शिक्षा, जैन धर्म में नारी शिक्षा, प्राचीन भारत में नारी शिक्षा का विश्लेषण आदि विषयों को सम्मिलित किया गया है। तृतीय खण्ड- बौद्ध कालीन शिक्षा है जिसमें शिक्षा पद्धति, बुद्ध की शिक्षाएं, बौद्ध धर्म दर्शन, विज्ञानवाद, सामाजिक व्यवस्था, संस्कार, अध्यापन विधियाँ, नैतिक शिक्षा, शिक्षार्थी एवं आचार्य परम्परा, शिक्षण संस्थाओं आदि को सम्मिलित किया गया है।
आशा है कि यह ग्रंथ प्राचीन भारतीय शिक्षा के अध्येताओं, गवेषकों तथा सामान्य पाठकों के लिए भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी।
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