पुस्तक परिचय
इतिहास एवं पुरातत्त्व में अयोध्या का कनक भवन ग्रन्थ अयोध्या में अवस्थित कनक भवन के ऐतिहासिक, स्थापत्य एवं धार्मिक पक्ष को प्रस्तुत करने वाला प्रथम ग्रन्थ है।
इस ग्रन्थ में कनक भवन के साथ-साथ अयोध या के प्राचीन से लेकर अद्यतन इतिहास का विश्लेषण पुरातत्विक, साहित्यक एवं धार्मिक, आभिलेखिक एवं जनश्रुतियों के आधार पर प्रस्तुत किया गया है। कनक भवन के इतिहास, स्थापत्यकला तथा स्थापित मूर्तियों के अलंकरण का कला परक साङ्गोपाङ्ग प्रस्तुतीकरण इस ग्रन्थ का अपना वैशिष्ट्य है। कनक भवन मन्दिर में होने वाले समस्त धार्मिक अनुष्ठान तथा उत्सवों आदि की भव्य चित्रात्मक प्रस्तुति ग्रन्थ को भव्यता एवं पूर्णता प्रदान करती है। ग्रन्थ में मन्दिर के गर्भगृह में स्थापित सीताराम जी की युग्म चल एवं अचल प्रतिमाओं के परिधान एवं विशिष्ट अलंकरण आदि का विवेचन प्रथम बार किया गया है।
निष्कर्षतः अयोध्या के इतिहास, स्थापत्य एवं धार्मिक अभिरुचि के पाठकों अध्येताओं तथा गवेषकों के अतिरिक्त पुस्तकालयों के लिये यह ग्रन्थ अत्यन्त उपादेय होगा।
लेखक परिचय
प्रोफेसर (डॉ०) विजय कुमार पाण्डेय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विषय में 34 वर्षों से अध्ययन एवं अनुसन्धान के प्रति समर्पित हैं। इनके द्वारा तीन ग्रन्थों एवं पचास से अधिक शोध लेखों का प्रकाशन किया गया। इन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली से विभाग के लिए इन्वायरमेन्ट ऐज ए फैक्टर इन हिस्ट्री और स्वयं आर्कियोलाजिकल एक्सप्लोरेशन ऐट फैजाबाद एण्ड बाराबंकी की परियोजना पर उल्लेखनीय कार्य किया। इनके निर्देशन में 30 से अधिक शोध छात्र-छात्राओं ने पी-एच० डी० की उपाधि प्राप्त की।
इतिहासकार प्रोफेसर पाण्डे ने 6 वर्षों तक संकायाध्यक्ष कला संकाय, महामहिम राज्यपाल उ०प्र०, लखनऊ द्वारा गोरखपुर विश्व-विद्यालय, गोरखपुर, महात्मागाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी और अयोध्या शोध संस्थान में कार्यपरिषद सदस्य पद पर नामित किये गये जहाँ पर इन्होंने रहकर सराहनीय कार्य किया। इन्होंने निर्माण की दिशा में इतिहास भवन, कोशल संग्रहालय, ऋषभदेव शोधपीठ और श्रीराम शोधपीठ स्थापित करने की श्रृंखला में उल्लेखनीय कार्य किया। – सम्प्रति प्रो० पाण्डे डॉ० आर० एम० एल० अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद के इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में 14 मई 1991 से कैडर पद पर प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हैं। अभी हाल में महामहिम राज्यपाल उ०प्र० ने प्रो० पाण्डे को वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर में कार्य परिषदसदस्य नामित किया है।
भूमिका
कनक भवन का विवेचन करने के पूर्व अयोध्या की भौगोलिक स्थिति का पर्यवेक्षण अत्यावश्यक है। पुण्यसलिला सरयू नदी के तट पर अवस्थित अयोध्या प्राचीनतम धार्मिक एवं ऐतिहासिक नगर है। अथर्ववेद (10.2.31), तैत्तिरीय आरण्यक (1.27.2) में अयोध्या का सूत्रवत् निरूपण किया गया है, जहाँ ऋतुपर्ण एवं श्रीराम की राजधानी का उल्लेख है। ब्रह्माण्ड पुराण (4.40.91), अग्निपुराण (109.24), रामायण (1.5.5-7) के अनुसार कोशल देश में सरयू नदी का पावन प्रवाह है। अंगुत्तर निकाय (जिल्द 4 पृ० 252) में वर्णित है कि छठी शताब्दी ई०पू० में कोसल सोलह महाजनपद तथा चार राजतन्त्रात्मक राज्यों में एक महत्वपूर्ण महाजनपद
और बाद में विख्यात् राजतन्त्रात्मक राज्य बना। जब कोसल दो भू-भागों में बँटा, उस समय उत्तर कोसल एवं दक्षिण कोसल को सरयू (घाघरा) विभाजित करती थी। रघुवंश (6.71,9.01) के अनुसार अयोध्या उत्तर कोसल की राजधानी थी। वायुपुराण (88.20) में इक्ष्वाकुवंशी राजाओं की सूची है, जिसका विस्तृत रूप पद्मपुराण (6.208.46-47) में भी उपलब्ध होता है। रघुवंश में अयोध्या एवं साकेत का विलयन है, किन्तु छठी शताब्दी ई०पू० में भिन्न है। टालेमी ने “साकेत” को “सागेद” बताया है। ब्रह्माण्ड पुराण (3.54.54.), पाणिनि की अष्टाध्यायी, (1. 3.25), महाभाष्य (जिल्द 1 पृ० 281), में उल्लेख है कि “यह मार्ग साकेत को जाता है।” इससे साकेत की स्थिति का ऐतिहासिक अभिज्ञान होता है।
पाणिनि (3.2.111) के पतंजलि महाभाष्य में “अरुणद यवनः साकेतम्” का उल्लेख इण्डोग्रीक आक्रमणकारियों का भारतीय साक्ष्य है। फाहियान ने “शा-ची” और हुएनसांग ने इसे “विसाखा” भी कहा है। काशिका (पाणिनि 5.1.116) का कथन है कि “पाटलिपुत्रवत् साकेते परिखा”। सातवीं शताब्दी ई० में साकेत नगर चौड़ी खाई के साथ विद्यमान था। अभिधानचिन्तामणि (पृ. 182) के अनुसार साकेत, कोसल एवं अयोध्या एक ही नगर के पर्याय है।
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