अष्टाध्यायी सहजबोध पञ्चम भाग – Ashtadhyayi Sahajbodh (Part 5)

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Author Dr.Pushpa Dikshit

भगवान पाणिनि की अष्टाध्यायी की अप्रतिम संरचना ने इस नवीन विधि को व्यक्त करने के लिये मुझे बाध्य किया है। यही कारण है कि मैंने अपनी ‘पाणिनिया पौष्पी प्रक्रिया‘ में शब्दसिद्धि के ठीक उसी सामान्यविशेषवान मार्ग को प्रकट किया है, जिसका दर्शन भगवान पाणिनि ने अनन्त शब्दराशि के व्यत्पादन के लिये लघुतम उपाय के रूप में किया था।

इस पाणिनीय-पौष्पी-प्रक्रिया के पूर्व, पूरे विश्व में पाणिनीय व्याकरण को पढ़ने की एक ही विधि प्रचलित रही है, वह है सिद्धान्तकौमुदी का प्रक्रियाक्रम, जिसमें प्रयोगों को पहले कल्पित करके, उनके अनुसार सूत्रों को उपस्थित किया जाता है। यह सर्वथा अवैज्ञानिक, असंगत और पाणिनि से सर्वथा असम्मत है। यह सारे लौकिक तथा वैदिक शब्दों की सिद्धि का वह उपाय ही नहीं है, जिसका प्रत्यक्ष भगवान पाणिनि ने किया था। यही कारण है कि इस मार्ग से प्रक्रिया सिद्ध करने में १२ वर्ष का समय लगाकर भी छात्र को प्रक्रिया का समग्र दर्शन नहीं हो पाता। किसी भी शास्त्र की एक स्थापित विधि के रहते हुए उस विषय में नई बात को कहना, कठिन ही नहीं, दु:साहस भी है। किन्तु भगवान पाणिनि की अष्टाध्यायी की अप्रतिम संरचना ने इस नवीन विधि को व्यक्त करने के लिये मुझे बाध्य किया है। यही कारण है कि मैंने अपनी ‘पाणिनिया पौष्पी प्रक्रिया‘ में शब्दसिद्धि के ठीक उसी सामान्यविशेषवान मार्ग को प्रकट किया है, जिसका दर्शन भगवान पाणिनि ने अनन्त शब्दराशि के व्यत्पादन के लिये लघुतम उपाय के रूप में किया था। यह प्रक्रिया राष्ट्रभाषा में अष्टाध्यायी सहज शोध’ नाम से आठ भागों में तथा ‘नव्यसिद्धान्तकौमुदी नाम से देवभाषा में आठ भागों निर्दिष्ट है। इस क्रम से अष्टाध्यायीकी सारी प्रक्रियायें छह मास में सिद्ध हो जाती हैं। अत:व्याकरण शास्त्र के अध्येताओं को, सिद्धान्तकीमुदयादिप्रक्रियाग्रन्थों के क्रम की अपाणिनीयता और काठिन्य, तथा पापिनीया पौष्यी प्रक्रिया के क्रम की पाणिनीयता और सारल्य को अवश्य जानना चाहिए।

सिद्धान्त कौमुदी के सुवन्त प्रकरण में अन्त्यवर्ण के अनुसार प्रातिपदिकों के दो विभाग किये गये हैं अजन्त शब्द पर हलन्त शब्द। उसके बाद लिंगानुसार इन दोनों के तीन-तीन विभाग करके सुबन्तप्रकरण के छह विभाग कर दिये गये हैं। यह लिंगानुसारी प्रक्रियाविभाग सर्वथा अपाणिनीय है, क्योंकि सुबन्त प्रक्रिया लिङ्ग आश्रित नहीं है ।अष्टाध्यायी में सुबन्तप्रक्रिया के लिये लिङ्गानुसारी कुल १४ सत्र- हैं। इन चौदह सूत्रों को छोड़कर जो कार्य होते हैं, वे सर्वनामस्थान, असर्वनामस्थान, भ, पद, धि नदी आदि संज्ञाओं के अनुसार होते हैं, लिङ्गानुसार नहीं। अत:मैंने सिद्धान्तकौमुदी के लिनसारिविभाजन को त्यागकर सारे प्रातिपदिकों के अकारान्त से लेकर हकारान्त तक विभाग किये हैं। इसके ईकारात विभाग में वह श्रेयसी, कुमारी, इत्यादि सारे पुंलिङ्ग नदीसंज्ञक शब्द, और गौरी, लक्ष्मी, इत्यादि सारे स्त्रीलिङ्ग नदी संजय शब्द एक साथ विचारित हैं। सुबन्त प्रक्रिया में कुल १६ सूत्र ऐसे हैं, जो कि वेद के लिये विशेष कुछ कहते हैं. इन्हें मैंने सुबन्त प्रक्रिया के अन्त में दे दिया है। सुबन्त प्रक्रिया के बाद स्त्रीप्रत्यय और दि्विरक्तिप्रकियाभी इसीभाग में व्याख्याता है।

Year

2018

Pages

360pp

ISBN

978-81-7702-007-2

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