पर्याय या समानार्थक शब्द एक से होते हुए भी उनकी अर्थच्छायाओं में सूक्ष्मान्तर होता है। उदाहरण के लिए सब के हृदय में मद (आनन्द) उत्पन्न करने के कारण कामदेव ‘मदन’ कहलाता है, वैसे ही सब प्रणियों के दर्प को दलने के कारण वह ‘कंदर्प’ की संज्ञा पाता है, अंग से रहित होने के कारण वही ‘अनंग’ प्राणियों के मन में उत्पन्न होने से ‘मनसिज’ तथा फूलों के धनुष से युक्त होने से ‘पुष्पधन्वा’ कहलाता है। जब तक अर्थच्छायाओं एवं सूक्ष्मान्तरों का ठीक-ठीक ज्ञान नहीं होगा, तब तक कृति की समग्र अभिव्यक्ति को पहचानना संभव हो ही नहीं सकता।
इसी तथ्य को दृष्टिगत करते हुये कालिदास के काव्यों में उनके द्वारा प्रयुक्त शब्दों तथा उनके पर्यायों को अकारादि क्रम से प्रस्तुत करते हुये उन शब्दों की व्युत्पत्ति, अर्थ, उद्धरण, सन्दर्भ तथा उद्धरणों का हिन्दी में अनुवाद भी इस ग्रन्थ में प्रस्तुत किया गया है।
यह कार्य लगभग तीन लाख कार्डों पर किया गया। प्रत्येक शब्द की प्रयोगावृत्तियों एवं संदर्भो को यथक्रम, यथास्थान प्ररोचित किया गया है। संस्कृत साहित्य के भाषीय विश्लेषण की दिशा में किया गया, यह एक महनीय प्रयास है। यह कोश संस्कृत के गहन अध्येताओं प्राध्यापकों अनुसंधत्सुओं के लिए उपयोगी है।
कालिदास पर्याय कोष (2 भाग) – Kalidas Paryay Kosh
Original price was: ₹2,000.00.₹1,500.00Current price is: ₹1,500.00.
by Tribhuvan Nath Shukla
प्रत्येक शब्द की प्रयोगावृत्तियों एवं संदर्भो को यथक्रम, यथास्थान प्ररोचित किया गया है। संस्कृत साहित्य के भाषीय विश्लेषण की दिशा में किया गया, यह एक महनीय प्रयास है। यह कोश संस्कृत के गहन अध्येताओं प्राध्यापकों अनुसंधत्सुओं के लिए उपयोगी है।

Year | 2008 |
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Pages | 924 pp |
Size | 23 cms. |
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