आज के इस वैश्वीकरण के युग में भी यन्त्रसंकलित, अर्थ – प्रवण भौतिकतावादी भारतीय समाज अपनी धार्मिक-आध्यात्मिक अभिरुचि, सांस्कृतिक अस्मिता, सामाजिक संस्थाओं, संस्कारों, अनुष्ठानों एवं तज्जन्य क्रिया-व्यापारों से सर्वथा पृथक नहीं हो सका है और इसका कारण है पुरुषार्थ चतुष्टय साधक वर्णाश्रम-धर्म-प्रधान वैदिक संस्कृति से जुड़ाव। उसी से सङ्कट एवं सङ्क्रमण के भिन्न-भिन्न समयों में भारतीय सांस्कृतिक अस्मिता और शिथिलोन्मुखी मान्यताओं से दृढ़ीकरण के लिये, ‘कृण्वन्तुविश्वमार्यम्’ आदर्श वाले अपने वैदिक मूल से, यह मूल्य एवं संजीवनी ऊर्जा, पथ्य और औषधि की खोज कर उनके माध्यम से अपनें में युगानुरूप संशोधन-परिवर्धन कर सशक्त हो, ‘वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता:’ का लक्ष्य ले आगे बढ़ता रहा है।
ऐसी शक्तिदायिनी नवोन्मेषी वैदिक संस्कृति के प्रत्येक घटकों में उसके सातत्य-ज्ञान के प्रति अभिरुचि सहज स्वाभाविक है। इसी प्रकार की अभिरुचि के परिप्रेक्ष्य में ‘वैदिक संस्कृति एवं उसका सातत्य विषयक’ सम्पन्न राष्ट्रीय संगोष्ठी से सम्बद्ध शोध-पत्रों (14 आङ्गल तथा 37 हिन्दी भाषा) का सङ्ग्रह यह सम्पादित ग्रन्थ अपने विषय का महत्त्वपूर्ण विवेचन प्रस्तुत करता है।
अतः ऐसा विश्वास है कि यह ग्रन्थ वैदिक संस्कृति एवं उसकी परम्परा में रुचि रखने वाले सामान्य पाठक, विद्यार्थी और शोधकर्ताओं सभी के लिए उपयोगी होगा।
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डॉ० सीताराम दुबे (ज० 1956) की समस्त उउच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्व विद्यालय, वाराणसी में सम्पन्न हुई। भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद् नई दिल्ली द्वारा पोस्ट डाक्टोरल अध्येतावृत्ति । पुरातत्त्वीय उत्खनन : छत्तीसगढ़ के विलासपुर, राजनन्दगाँव, रायपुर एवं दुर्ग जिलों में तथा मध्यप्रदेश के नीमच तथा मन्दसौर जिले में। अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों एवं सम्मेलनों में सहभागिता एवं शोध पत्रवाचन तथा पुरश्चर्या पाठ्यक्रमों में व्याख्यान इलाहाबाद विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर (फेलो) के रूप में व्याख्यान
राष्ट्रीय संगोष्ठियों के समन्वयक एवं निदेशक जिनमें मुख्यत: (i) बौद्धयुगीन भारत, (ii) सम-सामयिक इतिहास लेखन प्रविधि एवं प्रवृत्तियाँ, (iii) आभिलेखिक अध्ययन की प्रविधियाँ एवं इतिहास लेखन, (iv) वैदिक संस्कृति एवं उसका सातत्य, (v) विक्रम समस्या एवं काल गणना में विक्रम संवत् तथा (vi) वैदिकवाङ्मय की ऐतिहासिक व्याख्या पद्धति ।
‘कलचुरि अभिलेखों का सांस्कृतिक अध्ययन’ पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा लघुशोध परियोजना |
प्रकाशित ग्रन्थ बौद्ध संघ का प्रारम्भिक विकास, बौद्ध युगीन भारत, सम-सामयिक इतिहास लेखन-प्रविधि एवं प्रवृत्तियाँ तथा आभिलेखिक अध्ययन की प्रविधियाँ एवं इतिहास लेखन (दो भाग)।
डॉ० हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर ( म०प्र०) के प्रा० इतिहास पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग में अध्ययापन।
सम्प्रति : आचार्य एवं अध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति अध् ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन ( म० प्र० ) ।
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