कृषि एवं कृषक समुदाय अतीत काल से ही भारतीय अर्थव्यवस्था के आधार रहे हैं। कृषि के उद्भव एवं विकास के पूर्व जब मनुष्य आखेटक एवं अन्न संग्राहक के रूप में जीवन – यापन कर रहा था, तभी सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी प्रारंभ हो गईं थीं, तथापि सभ्यता का उन्मेष कृषि जनित अधिशेष उत्पादन के उपरान्त ही सम्भव हो सका । जीविका के साधन के रूप में कृषि का अनुसन्धान मनुष्य ने नवपाषाण काल में किया तथा कृषि मूलक अर्थव्यवस्था के गर्भ से ही ताम्र प्रस्तर काल तक नगर – जीवन अस्तित्व में आया। कृषि के विकास एवं विस्तार ने ही मानव-समूहों की खाद्य-समस्या का स्थायी समाधान प्रस्तुत किया तथा संस्कृति के नाना अवयवों के विकास का सुअवसर प्रदान किया। परिवार एवं राज्य जैसी संस्थाओं के प्ररोह तथा धर्म की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। प्रस्तुत कार्यवृत्त (Proceeding) में कुल 54 लेख (8 अंग्रेजी एवं 46 हिन्दी) यथासंभव ऐतिहासिक तिथिक्रम में संयोजित हैं, जो भारतीय इतिहास के विविध कालखण्डों से सम्बद्ध हैं तथा करते हैं। का परिदृश्य प्रस्तुत करने वाला यह संग्रह कृषि विज्ञान सम्बन्धी ज्ञान के क्षितिज का किंचित विस्तार करेगा तथा विद्यार्थियों, शोधार्थियों, जिज्ञासुजनों तथा विभिन्न अनुशासनों के आचार्यों एवं जनसामान्य के लिए उपयोगी पाठ्य सामग्री प्रस्तुत करेगा। साथ ही ग्रन्थालयों के लिए महत्वपूर्ण सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में अत्यधिक संग्रहणीय रहेगा।
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