बौद्ध शैव और शाक्त-तंत्र – Bauddh Shaiv Aur Shakt Tantra

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Dr. Surendra Jha

वर्तमान कृति का मुख्य उद्देश्य संताल परगना, झारखंड के दूरदराज के एक अनजान मगर विशेष गांव, मलूटी, से पाठकों को परिचित कराना है। उस अवधि में जब बौद्ध धर्म भारत से पूरी तरह समाप्त हो गया था यानि विक्रमशिला विश्वविद्यालय के पतन के बाद – तो वहगांव वज्रयानी तांत्रिक साधना का केंद्र था। मात्र यही नहीं मलूटी ने विशेष प्रकार की एक धार्मिक संस्कृति विकसित की थी जो बौद्ध, शैव और शाक्त तांत्रिक साधना कासंश्लेषित स्वरूप था।

वर्तमान कृति का मुख्य उद्देश्य संताल परगना, झारखंड के दूरदराज के एक अनजान मगर विशेष गांव, मलूटी, से पाठकों को परिचित कराना है। उस अवधि में जब बौद्ध धर्म भारत से पूरी तरह समाप्त हो गया था यानि विक्रमशिला विश्वविद्यालय के पतन के बाद – तो वहगांव वज्रयानी तांत्रिक साधना का केंद्र था। मात्र यही नहीं मलूटी ने विशेष प्रकार की एक धार्मिक संस्कृति विकसित की थी जो बौद्ध, शैव और शाक्त तांत्रिक साधना कासंश्लेषित स्वरूप था। हम पाते हैं कि वज्रयान (सरस्वती) पूरी तरह शैववाद (गंगा) और शक्तिवाद (यमुना) मेंआत्मसात हो गया था और ये तीनों ग्राम की अधिष्ठात्रीदेवी मौलीक्षा में संश्लेषित दृष्टि होते हैं। देवी मौलीक्षा इस परिप्रेक्ष्य में विशिष्ट हैं कि वेसमवेत रूप में वज्रयानी, पौराणिक और शाक्त तांत्रिक देवी हैं। मलूटी की विशेषताएँ यहीं तक सीमित नहीं हैं । गांव में 108 मंदिर हुआ करते थे जिनमें 76 आज भी अस्तित्व में हैं। कुल 63 शिव मंदिर कहाँ है जिसमें शिवलिङ्ग प्रतिष्ठित हैं। इन शिव मंदिरों के शिखर पर त्रिशूल कावजदंड ने स्थानापन्न किया है और यह विज्ञान और शैववाद के संश्लेषण का एक दूसरा विरल और उत्कृष्ट उदाहरण है।
यहाँ के मन्दिरों में छाजन शैली का वास्तुशिल्प अपनेआप में विलक्षण है और हमने इसे मलूटी शैली कहा है जो बीरभूम और बांकुड़ा शैली से साम्य रखते हुए भी भिन्नऔर विशिष्ट है। हर मंदिर पर टेराकोटा कला अपने आप मेंअनुपम है । वह न तो भित्ति चित्र है और न ही फ्रेस्को (गीले लेप पर चित्र उकेरने की एक विधा) बल्कि वज्रलेपसे उन्हें पेस्ट किया गया है। इस वज्रलेप का निर्माण स्थानीय वनस्पतियों, बालू और दूसरे विभिन्न अवयवों को मिलाकर किया जाता था। रामलीला, कृष्णलीला औरअन्य वैष्णव विषयों का चित्रण करती टेराकोटा कला संश्लेषण का एक और अलग उदाहरण है। गांव की कथा मनोहारी है। यह अनेकता में एकता केसाथ’ निरंतरता और परिवर्तन के सिद्धांत पर विकसित भारतीय लोक संस्कृति के उद्भव को प्रतिबिम्बित करती है। आशा है कि दर्शन, तंत्र, धर्म, कला और संस्कृति के छात्रों के साथ मानव विज्ञान और समाज विज्ञान के छात्र भी इसे समान रूप से उपयोगी पायेंगे और इतिहास की देवीक्लियो प्रसन्न होंगी।

Year

2019

Pages

xiv + 114 + 80 illustrations

ISBN

978-81-7702-446-3

Size

29cms.

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